घर के पीछे अमराई के छोर पर था ,एक महुए का पेड़, जो जाड़ों में लदब्दा के फलता था, और उससे बहुत से महुए गिरते थे.तब भोर के पहले मुंह अँधेरे एक गरीब औरत उस महुए के तले आकर अपने बच्चों के साथ महुआ बिनती थी. उस महुए से उस बेचारी को ग़ुरबत में कुछ पौष्टिक तत्व मिल जाते थे. वो महुआ उबालकर उसमे अटा गुथ्के रोटी बना बच्चों को खिलाती थी.
इसे ही उसके दिन गुजर जाते थे, उसका पति नही tha , न कोई सुध लेने वाला था. वो जाड़ों में जब धन कट्टा तब भी , गिरा हुआ धान बिनती थी.
किन्तु एक दिन सरकारी कारिंदों ने महुआ कट दिया, महुए की दरयादिली यंही खत्म हो गयी, अब वो औरत भीख मांगती है, उसके बच्चे चोरी करते है.
सरकारी कारिंदे चाहते तो कई देशी पेड़ लगाकर महुआ वन लगा सकते थे, पर उनका मन वन से ज्यादा धन में लगा था, अब वो कारिंदे कीर्तन क्र पुन्य कमाते है,काश वो महुआ नही काटते तो उन्हें कीर्तन नही करना पड़ता.
इसे ही उसके दिन गुजर जाते थे, उसका पति नही tha , न कोई सुध लेने वाला था. वो जाड़ों में जब धन कट्टा तब भी , गिरा हुआ धान बिनती थी.
किन्तु एक दिन सरकारी कारिंदों ने महुआ कट दिया, महुए की दरयादिली यंही खत्म हो गयी, अब वो औरत भीख मांगती है, उसके बच्चे चोरी करते है.
सरकारी कारिंदे चाहते तो कई देशी पेड़ लगाकर महुआ वन लगा सकते थे, पर उनका मन वन से ज्यादा धन में लगा था, अब वो कारिंदे कीर्तन क्र पुन्य कमाते है,काश वो महुआ नही काटते तो उन्हें कीर्तन नही करना पड़ता.